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A little boy at eight

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अजीब है मंजर इस स्टेशन का न जाने लोग कहाँ को जाते हैं किसकी कहाँ मंज़िल किसका कौन सा रास्ता बस किसी धुन में रमे चले जाते हैं | लाखों हैं यहाँ इंसान , अलग रंग अलग रूप न जाने किस गाड़ी को पकड़ के पाये दिल सुकून शाम का है वक़्त सूरज ढल रहा है कहता सबसे खुश रहो , हम सुबह फिर आते हैं | वो देखो एक नन्हा लड़का उम्र कोई आठ साल तन पर नाम के वस्त्र कहने को कंगाल पर उसकी हिम्मत तो देखो न वो हार मानता है एक किताब फटी लिए हाथ में चाहे चाय बांटता है | पूछा उससे क्या बनना चाहते हो इस जहां में कहा उसने नहीं बनना मुझे इस मतलबी इंसान जैसा घर पर माँ रोटी है अब जहा वो वह मैं कोई खोये चैन कोई गवाए नींद , न जाने क्या पाना चाहते हैं | फिर भी उसकी आँखों में एक सपना दिखता है कुछ सीखने का ख्वाब कितना उसका अपना दिखता है उम्मीद है इस लाखों की भीड़ में न वो खोएगा कह न सका उससे फिर कुछ बस इतना बोल पाया रुकना न कभी राहों में , अब तुमको इस जहां में खुशियाँ बांटता तुमको पाते हैं || (Sachin)