वक़्त को गुज़रते

सोच रहा हूँ कि
वक़्त के इन अलसाये 
अलसाये लम्हों से
चुरा लूँ वक़्त ज़रा सा

उकेरूँ नए शब्द कागज़ पर
ज़ी लूँ ज़रा ख्वाबों को
सोचता हूँ भर दूँ
उनमें नया रंग ज़रा सा

नव जग के नव कण
की नयीं आशाएँ पाऊँ
हट कर प्राचीरता से
सोचूँ कुछ तो नया ज़रा सा

ज़िंदगी के कैनवास पर
बिखरे हैं हजारों रंग
रुकूँ समझूँ देखूँ थोड़ी देर
वक़्त को गुजरते ज़रा सा !! 
 
(Sachin)

Comments

Popular posts from this blog

Nokia IndiBlogger meet: Your Wish My App Season 2

Review: The One You Cannot Have

My first Liebster award